गंगोलीहाट: सीमांत जनपद के तहसील गंगोलीहाट के ग्राम रणकोट की महिलाओं एवं किशोरियों ने पारंपरिक ऐपण कला में कौशल संवर्धन एवं तकनीकी नवाचार विषयक सात दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में इस कला के व्यवसायिक प्रयोग की बारीकियां सीखी। सिंघानिया बेल, हिमाचली बेल, वसुधरा, बिंदु, स्वास्तिक, ओम् आदि मुख्य मोटिव्स को समाहित करते हुए आकर्षक डिजाइन बनाए।
गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर के कुलपति डॉ मनमोहन सिंह चौहान एवं सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय की अधिष्ठाता डॉ अल्का गोयल के मार्गदर्शन में क्रियान्वित आई सी ए आर एस सी-एस पी परियोजना 2024-25 द्वारा उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत ऐपण को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्थापित करते हुए इसे आजीविका से जोड़ने का यह एक अभिनव प्रयोग है।
परियोजना समन्वयक डॉ छाया शुक्ला ने बताया कि प्रशिक्षण के माध्यम से प्रशिक्षणार्थी न सिर्फ अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझने एवं इस कला में पारंगत होने के गुर सीख रहे हैं बल्कि इस कला को एक उद्यम के रूप में स्थापित करने के लिए भी प्रेरित हो रहे हैं। प्रशिक्षणार्थियों का मानना है कि वे भविष्य में समूह बनाकर इस कार्य को जारी रखेंगे और इस कला से मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाकर जीविकोपार्जन एवं आर्थिक सशक्तिकरण हेतु कार्य करते रहेंगे।
सात दिनों के इस प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों ने अपनी कला कौशल का विकास करते हुए ड्राफ्टिंग टूल्स के प्रयोग की बारीकियां सीखी तथा ज्यामिति रूप से शुद्ध डिजाइन बनाकर उन्हें विभिन्न माध्यमों पर उतरना सिखा। मीनाक्षी, संजीवनी, दिव्यांशी, समीक्षा, रवीना, शिवानी, सरोज, करुणा प्रियांशी आदि प्रतिभागियों के अनुसार इस प्रकार का प्रशिक्षण रणकोट गांव में पहली बार आयोजित किया जा रहा है।
सभी प्रतिभागी प्रशिक्षण के दौरान सिखाए जाने वाली गतिविधियों में उत्साह के साथ प्रतिभाग कर रहे हैं। ऐपण एक्सपर्ट प्रियंका कपूर ने प्रतिभागियों को दीवार घड़ी को ऐपण कला सुसज्जित करना सिखाया। इस क्रम में घड़ी को सावधानी पूर्वक खोलकर उसकी सुइयों को अलग करना, बेस पेंट करना और फिर ज्यामिति रूप से सुदृढ आकर्षक डिजाइन बनाना तथा पुनः घड़ी को पूर्ववत बंद करना सिखाया। परियोजना सह समन्वयक डॉ संध्या रानी ने प्रतिभागियों को एक्रेलिक लकड़ी से बने चाबी के गुच्छों पर ऐपण कला करनी सिखाई। गांव के ही अनीश विश्वकर्मा, जो की कला विषय के साथ इंटरमीडिएट के विद्यार्थी है, ने इस प्रशिक्षण के दौरान तन्मयता एवं लगन से प्रशिक्षणार्थियों को ऐपण सीखाने की जिम्मेदारी उठाई। अनीश के अनुसार यह प्रशिक्षण कार्यक्रम उनके लिए स्वयं को मास्टर ट्रेनर के रूप में स्थापित करने का सुनहरा अवसर है।
परियोजना समन्वयक डॉ छाया शुक्ला ने कहा कि इस प्रशिक्षण का उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं एवं किशोरियों को उत्तराखंड की पारंपरिक ऐपण कला में कुशल बनाना तथा तकनीकी नवाचार द्वारा ज्यामितीय रूप से परिपक्व डिजाइन तैयार करना है। अपनी संस्कृति के प्रति लोगों को जागरूक कर इस कला के माध्यम से आजीविका के अवसरों की जानकारी देकर महिलाओं एवं किशोरियों को स्वावलंबी और उद्यमी बनने हेतु प्रयास करना भी इस परियोजना का एक उद्देश्य है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में गांव की कुल 35 महिलाओं एवं किशोरियों द्वारा बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया जा रहा है।
